हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा है और सबसे ज्यादा बोली और समझी जानेवाली भाषा है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध प्रांतों में बोली जाती हैं । २६ जनवरी १९६५ को हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया। चीनी के बाद हिन्दी विश्व में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है । भारत और विदेश में ६० करोड़ (६०० मिलियन) से अधिक लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं । फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम और नेपाल की अधिकतर जनता हिन्दी बोलती है । भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते हैं । हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है । उर्दू नस्तालिक़ में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर फारसी और अरबी भाषाओं का ज़्यादा असर है । व्याकरणिक रुप से उर्दू और हिन्दी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है - सिर्फ़ कुछ खास क्षेत्रों में शब्दावली के स्त्रोत (जैसा कि उपर लिखा गया है) में अंतर होता है। कुछ खास ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फारसी से ली गयी हैं और इसी तरह फारसी और अरबी के कुछ खास व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है। भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं : उच्च हिन्दी--हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी। दक्खिनी--हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं। रेख़्ता--उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता है। उर्दू--हिन्दी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं,और फ़ारसी-अरबी के शब्द ज़्यादा। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है। हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है । हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है । इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनो के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक । उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद 343, भारतीय संविधान) । ये इन भारयीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरयाणा, और दिल्ली । उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है । ये लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है । दुर्भाग्यवश हिन्दुस्तानी को कहीं भी संवैधानिक दर्जा नहीं मिला हुआ है । हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः दो वर्ग हैं-- तत्सम शब्द-- ये वो शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है । तद्भव शब्द-- ये वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है । इसके अलावा हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी, आदि से भी आये हैं । जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द लगभग पूरी तरह से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" कहते हैं । तथाकथित "हिन्दू राष्ट्रवादी" लोग ख़ास तौर पर "शुद्ध हिन्दी" पर अत्यधिक बल देते हैं । इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त वयंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है । संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना । शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था । आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है । हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है । परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है। ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फ़ारसी भाषाओं से उधार ली गयी हैं । इनका स्रोत संस्कृत नहीं है । कई हिन्दीभाषी इनका ग़लत उच्चारण करते हैं । देवनागरी लिपि में ये सबसे क़रीबी संस्कृत के वर्णाक्षर के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगाकर लिखे जाते हैं । हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यंजन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिये गये हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं । असल में ये संस्कृत के साधारण ड, "ळ" और ढ के बदले हुए रूप हैं । हिन्दी में सिर्फ़ दो ही लिंग होते हैं : स्त्रीलिंग और पुल्लिंग। कोई वस्तु या जानवर या वनस्पति या भाववाचक संज्ञा स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग, इसका भेद सिर्फ़ रिवा़ज से होता है, जिसे याद करना पड़ता है (कभी-कभी संज्ञा के अन्त-स्वर से भी पता चल जाता है)। संज्ञा में तीन शब्द-रूप हो सकते हैं -- प्रत्यक्ष रूप, अप्रत्यक्ष रूप और संबोधन रूप। सर्वनाम में कर्म रूप और सम्बन्ध रूप भी होते हैं, पर सम्बोधन रूप नहीं होता। संज्ञा और आ-कारन्त विशेषण में प्रत्यय द्वारा रूप बदला जाता है। सर्वनाम में लिंग-भेद नहीं होता। क्रिया के भी कई रूप होते हैं, जो प्रत्यय और सहायक क्रियाओं द्वारा बदले जाते हैं। क्रिया के रूप से उसके विषय संज्ञा या सर्वनाम के लिंग और वचन का भी पता चल जात है। हिन्दी में दो वचन होते हैं-- एकवचन और बहुवचन । किसी शब्द की वाक्य में जगह बताने के लिये कई कारक होते हैं, जो शब्द के बाद आते हैं (postpositions)। अगर संज्ञा को कारक के साथ ठीक से रखा जाये तो वाक्य में शब्द-क्रम काफ़ी मुक्त होता है। कम्प्यूटर और इन्टरनेट ने पिछ्ले वर्षों मे विश्व मे सूचना क्रांति ला दी है । आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नही रह सकती। कम्प्यूटर और के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोडकर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूतर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिससे कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंगरेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा(लिपि) में काम ही नही कर सकता। किन्तु यूनिकोड(Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। इस समय हिन्दी में सजाल (websites), चिट्ठे (Blogs), विपत्र (email), गपशप (chat), खोज (web-search), सरल मोबाइल सन्देश (SMS) तथा अन्य हिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों मे इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें।